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iupac nomenclature questions

iupac nomenclature questions.IUPAC नामकरण के प्रश्नों से सीखें यौगिकों के सही नामकरण का तरीका, और बढ़ाएं अपनी रसायन ज्ञान की धार!

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iupac nomenclature questions

 

प्रचलित नामकरण प्रणाली (Trivial Nomenclature System):iupac nomenclature questions

प्रचलित नामकरण प्रणाली, जिसे सामान्य या ट्रेड नामकरण प्रणाली भी कहा जाता है, कार्बनिक यौगिकों के उन नामों को संदर्भित करती है जो वैज्ञानिक नामकरण के बजाय परंपरागत और सामान्य उपयोग में होते हैं। ये नाम अक्सर यौगिक की उत्पत्ति, इसके उपयोग, या खोजकर्ता द्वारा दिए गए होते हैं, न कि इसकी संरचना के अनुसार।

प्रचलित नामकरण प्रणाली की विशेषताएं:

  1. सरल और आसानी से याद रखने योग्य: प्रचलित नाम सरल होते हैं और आमतौर पर वैज्ञानिकों, छात्रों और आम जनता के बीच प्रचलित होते हैं। ये नाम आमतौर पर जटिल संरचनात्मक जानकारी के बजाय आसान शब्दों में होते हैं।
  2. रासायनिक संरचना पर आधारित नहीं: इस प्रणाली में यौगिकों के नाम उनकी रासायनिक संरचना पर आधारित नहीं होते हैं। उदाहरण के लिए, एसीटोन (Acetone) का वैज्ञानिक नाम प्रोपेनोन (Propanone) है, लेकिन एसीटोन नाम आमतौर पर उपयोग में लाया जाता है।
  3. परंपरागत उपयोग: कई प्रचलित नाम बहुत पुराने हैं और वैज्ञानिक नामकरण प्रणाली के विकास से पहले से उपयोग में हैं। ये नाम अधिकतर परंपरागत रूप से जारी रहते हैं, विशेषकर जिन यौगिकों का उपयोग दैनिक जीवन में होता है।
  4. स्रोत पर आधारित नाम: कुछ प्रचलित नाम यौगिक के स्रोत से संबंधित होते हैं। उदाहरण के लिए, फॉर्मिक एसिड (Formic Acid) का नाम लैटिन शब्द “फॉर्मिका” (formica) से लिया गया है, जिसका अर्थ चींटी होता है, क्योंकि यह एसिड पहली बार चींटियों में पाया गया था।

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उदाहरण:

  1. फॉर्मिक एसिड (Formic Acid):
    • वैज्ञानिक नाम: मेथेनोइक एसिड (Methanoic Acid)
    • स्रोत: चींटियों में पाया जाता है।
  2. एसीटोन (Acetone):
    • वैज्ञानिक नाम: प्रोपेनोन (Propanone)
    • उपयोग: नेल पॉलिश रिमूवर और सॉल्वेंट के रूप में।
  3. ग्लूकोज (Glucose):
    • वैज्ञानिक नाम: डेक्सट्रोज (Dextrose)
    • उपयोग: शरीर में ऊर्जा स्रोत के रूप में।
  4. यूरिया (Urea):
    • वैज्ञानिक नाम: कार्बामाइड (Carbamide)
    • उपयोग: उर्वरक और रासायनिक उद्योग में।
  5. पैराफिन (Paraffin):
    • वैज्ञानिक नाम: एल्केन (Alkane)
    • उपयोग: मोमबत्तियों और लेप के रूप में।

प्रचलित नामकरण प्रणाली यौगिकों के नामकरण का एक गैर-वैज्ञानिक तरीका है, जो यौगिकों को आसानी से पहचानने और उपयोग करने में मदद करता है। यद्यपि यह वैज्ञानिक रूप से सही नहीं होता, लेकिन यह सामान्य उपयोग और रोजमर्रा के जीवन में व्यापक रूप से प्रचलित रहता है।

प्रचलित नामकरण प्रणाली की कमियाँ

प्रचलित नामकरण प्रणाली, यद्यपि सरल और आम उपयोग में होती है, लेकिन इसके कई महत्वपूर्ण नकारात्मक पहलू भी हैं। ये कमियाँ वैज्ञानिक अनुसंधान और शिक्षा के क्षेत्र में विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो सकती हैं।

1. रासायनिक संरचना की जानकारी का अभाव:

प्रचलित नाम किसी यौगिक की संरचना के बारे में कोई जानकारी नहीं देते हैं। जैसे कि एसीटोन (Acetone) और प्रोपेनोन (Propanone) दोनों एक ही यौगिक हैं, लेकिन एसीटोन नाम से इसकी संरचना स्पष्ट नहीं होती।

2. समान नाम का उपयोग:

कई यौगिकों के लिए समान प्रचलित नामों का उपयोग किया जाता है, जिससे भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। उदाहरण के लिए, एसीटिक एसिड (Acetic Acid) का प्रचलित नाम सिरका है, लेकिन यह एक सामान्य नाम है जिसका उपयोग कई पदार्थों के लिए भी होता है।

3. वैश्विक मान्यता का अभाव:

प्रचलित नाम क्षेत्रीय होते हैं और सभी देशों या भाषाओं में समान रूप से मान्य नहीं होते। इससे वैज्ञानिकों के बीच संचार में समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, क्योंकि एक यौगिक के लिए एक ही नाम कई अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग हो सकता है।

4. विस्तृत यौगिकों के लिए असमर्थ:

जब यौगिक की संरचना जटिल होती है, तब प्रचलित नामकरण प्रणाली में उसका सही नामकरण संभव नहीं होता। ऐसे यौगिकों के लिए विस्तृत नाम की आवश्यकता होती है, जिसे IUPAC प्रणाली बेहतर ढंग से प्रदान करती है।

5. नए यौगिकों के लिए सीमितता:

नई खोजों और संश्लेषित यौगिकों के लिए प्रचलित नामकरण प्रणाली में उचित नाम नहीं मिल पाता, क्योंकि यह प्रणाली परंपरागत और पहले से उपयोग में रहे यौगिकों तक सीमित है।

6. शैक्षणिक कठिनाई:

विज्ञान के छात्रों के लिए प्रचलित नाम समझना और याद रखना कठिन हो सकता है, क्योंकि ये नाम रासायनिक सिद्धांतों पर आधारित नहीं होते। इससे उनकी शिक्षा और रासायनिक यौगिकों की पहचान में समस्याएं आ सकती हैं।

7. सुसंगतता का अभाव:

प्रचलित नामकरण प्रणाली में कोई निश्चित नियम या मानक नहीं होते, जिससे नामकरण में सुसंगतता की कमी होती है। एक ही प्रकार के यौगिकों के लिए विभिन्न नाम हो सकते हैं, जो भ्रम पैदा करते हैं।

प्रचलित नामकरण प्रणाली की इन कमियों के कारण, वैज्ञानिक और शैक्षणिक क्षेत्रों में IUPAC नामकरण प्रणाली को प्राथमिकता दी जाती है। यह प्रणाली अधिक सटीक, संरचनात्मक जानकारी प्रदान करती है और वैश्विक रूप से मान्य होती है, जिससे वैज्ञानिक संवाद और अनुसंधान में मदद मिलती है।

IUPAC नामकरण क्या है?

IUPAC नामकरण (International Union of Pure and Applied Chemistry) कार्बनिक यौगिकों के नामकरण की एक प्रणालीगत विधि है, जिसे IUPAC द्वारा अनुशंसित किया गया है। इस प्रणाली का उद्देश्य यौगिकों को एक मानक और विशिष्ट नाम देना है, जिससे उनकी संरचना को स्पष्ट रूप से पहचाना जा सके।

कार्बनिक यौगिकों की बढ़ती खोज के कारण पारंपरिक नामकरण प्रणाली अप्रभावी हो गई थी, जिससे एक व्यवस्थित नामकरण प्रणाली की आवश्यकता उत्पन्न हुई। हालाँकि, कुछ यौगिकों के IUPAC नाम बहुत लंबे और जटिल हो सकते हैं, इसलिए उन्हें अक्सर सरल और सामान्य नाम दिए जाते हैं।

IUPAC नामकरण की विधियाँ:

  1. सबसे लंबी श्रृंखला का नियम: यौगिक की सबसे लंबी कार्बन श्रृंखला की पहचान की जाती है और उसे नामित किया जाता है। यह श्रृंखला यथासंभव लंबी होनी चाहिए, चाहे वह सीधी हो या किसी अन्य आकार की।
  2. लोकेट्स का न्यूनतम सेट: कार्बन श्रृंखला के कार्बन परमाणुओं को उस सिरे से गिना जाता है, जहाँ से स्थान (लोकेट) कम से कम हो और जहाँ प्रतिस्थापकों का समूह संलग्न हो।
  3. एक ही प्रतिस्थापक के कई उदाहरण: यदि यौगिक में एक ही प्रतिस्थापक कई बार उपस्थित होता है, तो उसके पहले डाय, ट्राय जैसे उपसर्ग का प्रयोग किया जाता है।
  4. विभिन्न प्रतिस्थापकों का नामकरण: यदि यौगिक में कई प्रतिस्थापक मौजूद हों, तो उन्हें वर्णमाला क्रम में नामित किया जाता है।
  5. जटिल प्रतिस्थापकों का नामकरण: जटिल प्रतिस्थापकों का नाम उनके संरचनात्मक समूह के अनुसार किया जाता है और इसे ब्रैकेट में लिखा जाता है।

उदाहरण:

मान लीजिए कि एक यौगिक में 9 कार्बन परमाणुओं की श्रृंखला है, जिसमें 5वें कार्बन परमाणु पर एक प्रतिस्थापक समूह संलग्न है। यह प्रतिस्थापक समूह 3 कार्बन परमाणुओं की एक श्रृंखला है, जिसमें पहले और दूसरे कार्बन पर एक-एक मिथाइल समूह जुड़े हैं। इस प्रतिस्थापक समूह को 1,2 डाइमिथाइल प्रोपाइल कहा जाएगा। तो इस यौगिक का IUPAC नाम होगा: 5-(1,2 डाइमिथाइल प्रोपाइल) नोनान।

कार्बनिक रसायन में IUPAC नामकरण

IUPAC (International Union of Pure and Applied Chemistry) नामकरण प्रणाली कार्बनिक यौगिकों के नामकरण के लिए एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत विधि है। इस प्रणाली का उद्देश्य कार्बनिक यौगिकों को एक स्पष्ट और समझने योग्य नाम देना है ताकि उनकी संरचना का सटीक विवरण प्राप्त हो सके। IUPAC नामकरण में कुछ नियम और सिद्धांत होते हैं जो कार्बनिक यौगिकों के नामकरण को व्यवस्थित और सरल बनाते हैं।

IUPAC नामकरण के प्रमुख नियम:

  1. सबसे लंबी कार्बन श्रृंखला की पहचान: सबसे पहले यौगिक में उपस्थित सबसे लंबी कार्बन श्रृंखला का चयन किया जाता है। इस श्रृंखला को ‘मूल श्रृंखला’ कहा जाता है, और यौगिक का नामकरण इसी श्रृंखला पर आधारित होता है।
  2. मूल श्रृंखला का नामकरण: मूल श्रृंखला में कार्बन परमाणुओं की संख्या के आधार पर उपसर्ग (जैसे, मिथेन, एथेन, प्रोपेन, ब्यूटेन आदि) का उपयोग किया जाता है।
  3. संख्या निर्धारण: मूल श्रृंखला के कार्बन परमाणुओं को इस प्रकार संख्या दी जाती है कि सबसे पहला प्रतिस्थापक (substituent) सबसे कम संख्या वाले कार्बन पर हो।
  4. प्रतिस्थापक का नाम: मूल श्रृंखला से जुड़े प्रतिस्थापक समूहों का नामकरण किया जाता है और उन्हें वर्णमाला क्रम में रखा जाता है। यदि एक ही प्रकार के प्रतिस्थापक कई बार आते हैं, तो उनके नाम के पहले ‘डाय-‘, ‘ट्राय-‘ आदि उपसर्ग जोड़े जाते हैं।
  5. क्रियात्मक समूह (Functional Group): यदि यौगिक में कोई क्रियात्मक समूह उपस्थित होता है, तो उसे भी नामकरण में शामिल किया जाता है। क्रियात्मक समूह के आधार पर नाम के अंत में उपसर्ग या प्रत्यय जोड़ा जाता है (जैसे -ओल, -ऑन, -ओइक एसिड आदि)।
  6. डबल और ट्रिपल बॉन्ड्स: अगर यौगिक में डबल या ट्रिपल बॉन्ड्स होते हैं, तो उनका स्थान (लोकेट) भी नाम में दर्शाया जाता है, और इनके लिए -इन (Triple bond) या -इन (Double bond) का प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण:

1. एथेनॉल (Ethanol): यह एक अल्कोहल है जिसकी संरचना में दो कार्बन और एक -OH (हाइड्रॉक्सिल) समूह होता है। IUPAC नामकरण के अनुसार, “एथेन” (दो कार्बन वाली श्रृंखला) और “ऑल” (हाइड्रॉक्सिल समूह के लिए प्रत्यय) मिलकर “एथेनॉल” नाम बनाते हैं।

2. 2-मिथाइलप्रोपेन (2-Methylpropane): इस यौगिक में तीन कार्बन की श्रृंखला होती है, और दूसरे कार्बन पर एक मिथाइल समूह जुड़ा होता है। इसलिए इसका नाम “2-मिथाइलप्रोपेन” होगा।

कार्बनिक रसायन में नामकरण (Nomenclature)

कार्बनिक रसायन में नामकरण एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिसमें कार्बनिक यौगिकों के नाम दिए जाते हैं ताकि उनकी संरचना और विशेषताओं का सही-सही वर्णन किया जा सके। IUPAC नामकरण प्रणाली (International Union of Pure and Applied Chemistry) का उपयोग इस उद्देश्य के लिए किया जाता है।

कार्बनिक यौगिकों का नामकरण कैसे करें:

  1. सबसे लंबी कार्बन श्रृंखला की पहचान करें: सबसे पहले यौगिक में सबसे लंबी लगातार कार्बन परमाणुओं की श्रृंखला का चयन करें। यह श्रृंखला यौगिक की आधार श्रृंखला (Parent Chain) कहलाती है।
  2. मुख्य श्रृंखला का नामकरण: कार्बन परमाणुओं की संख्या के अनुसार मुख्य श्रृंखला का नाम तय करें। जैसे:
    • 1 कार्बन: मिथेन (Methane)
    • 2 कार्बन: एथेन (Ethane)
    • 3 कार्बन: प्रोपेन (Propane)
    • 4 कार्बन: ब्यूटेन (Butane)
    • 5 कार्बन: पेंटेन (Pentane)
  3. संख्या निर्धारण (Numbering): मुख्य श्रृंखला में कार्बन परमाणुओं को इस प्रकार संख्या दें कि पहला प्रतिस्थापक (Substituent) सबसे कम संख्या वाले कार्बन परमाणु पर हो।
  4. प्रतिस्थापक समूहों का नाम: श्रृंखला से जुड़े किसी भी प्रतिस्थापक या शाखा समूह को पहचानें। जैसे कि मिथाइल (Methyl), एथाइल (Ethyl) आदि। इन्हें नामकरण में शामिल किया जाता है, और यदि एक ही प्रतिस्थापक समूह एक से अधिक बार उपस्थित हो, तो डाय (Di), ट्राई (Tri) जैसे उपसर्गों का उपयोग किया जाता है।
  5. क्रियात्मक समूह (Functional Group): यौगिक में उपस्थित क्रियात्मक समूह का नाम और उसका स्थान निर्धारण करें। विभिन्न क्रियात्मक समूहों के अनुसार प्रत्यय (Suffix) का उपयोग किया जाता है, जैसे:
    • हाइड्रॉक्सिल (-OH): -ऑल (Alcohols)
    • कार्बोक्जिलिक अम्ल (-COOH): -ऑइक एसिड (Carboxylic acids)
    • अल्डिहाइड (-CHO): -एल (Aldehydes)
  6. डबल और ट्रिपल बॉन्ड्स: यदि मुख्य श्रृंखला में डबल या ट्रिपल बॉन्ड्स हैं, तो उन्हें भी नाम में दर्शाया जाता है। इनके लिए -इन (Double bond) या -इन (Triple bond) का उपयोग किया जाता है, और उनका स्थान भी संख्या द्वारा दर्शाया जाता है।

उदाहरण:

1. ब्यूटेन (Butane):

  • संरचना: C₄H₁₀
  • यह चार कार्बन परमाणुओं की एक श्रृंखला है, जिसमें केवल एकल बॉन्ड होते हैं। इसका नाम ब्यूटेन है।

2. 2-मिथाइलप्रोपेन (2-Methylpropane):

  • संरचना: C₄H₁₀
  • इस यौगिक में तीन कार्बन की मुख्य श्रृंखला होती है, और दूसरे कार्बन पर एक मिथाइल समूह जुड़ा होता है। इसलिए इसका नाम 2-मिथाइलप्रोपेन है।

3. एथेनॉल (Ethanol):

  • संरचना: C₂H₅OH
  • यह एक अल्कोहल यौगिक है जिसमें दो कार्बन परमाणु और एक -OH समूह होता है। इसका नाम एथेनॉल है।

IUPAC नामकरण विधियाँ

IUPAC (International Union of Pure and Applied Chemistry) नामकरण प्रणाली रासायनिक यौगिकों को एक समान और व्यवस्थित तरीके से नाम देने के लिए विकसित की गई है। इस प्रणाली के अंतर्गत नामकरण की कुछ प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं:

1. मुख्य श्रृंखला की पहचान (Identification of the Parent Chain):

  • सबसे लंबी श्रृंखला का चुनाव करें जिसमें अधिकतम कार्बन परमाणु हों। इस श्रृंखला को मुख्य श्रृंखला कहा जाता है और उसी के आधार पर यौगिक का नाम तय होता है।
  • यदि दो या दो से अधिक समान लंबाई की श्रृंखलाएँ हों, तो उस श्रृंखला का चयन करें जिसमें अधिक संख्या में सहायक समूह (Substituents) जुड़े हों।

2. मुख्य श्रृंखला का नाम (Naming the Parent Chain):

  • मुख्य श्रृंखला के कार्बन परमाणुओं की संख्या के आधार पर मूल नाम (मिथेन, एथेन, प्रोपेन, आदि) तय करें। कार्बन संख्या के अनुसार उपसर्ग का उपयोग किया जाता है जैसे – मिथ (1), एथ (2), प्रोप (3), ब्यूट (4), पेंट (5), आदि।

3. शाखाओं और सहायक समूहों की पहचान (Identification of Substituents):

  • मुख्य श्रृंखला से जुड़ी छोटी श्रृंखलाओं या समूहों को सहायक समूह (Substituents) कहा जाता है। इन समूहों को नामांकित करना होता है जैसे कि मिथाइल (-CH3), इथाइल (-C2H5), क्लोरो (-Cl), आदि।
  • सहायक समूहों को मुख्य श्रृंखला में उनके स्थान के अनुसार नंबर दिए जाते हैं।

4. संख्या निर्धारण (Numbering the Chain):

  • मुख्य श्रृंखला में कार्बन परमाणुओं की गिनती उस छोर से शुरू करें, जिससे सहायक समूहों को सबसे कम संख्या मिले।
  • डबल या ट्रिपल बॉन्ड होने पर उन्हें प्राथमिकता दी जाती है, और गिनती उस छोर से शुरू की जाती है जहाँ से बॉन्ड को कम संख्या मिलती है।

5. सहायक समूहों का नामकरण (Naming the Substituents):

  • सहायक समूहों के नाम उनके कार्बन संख्या के साथ लिखे जाते हैं। यदि एक से अधिक समान सहायक समूह होते हैं, तो उनके नाम के पहले डाइ-, ट्राइ-, टेट्रा- जैसे उपसर्ग का प्रयोग किया जाता है।

6. फंक्शनल समूहों का नामकरण (Naming the Functional Groups):

  • यौगिकों में प्रमुख फंक्शनल समूह की पहचान करें और उसे प्राथमिकता दें। फंक्शनल समूह के नाम को यौगिक के अंत में जोड़ा जाता है, जैसे -ओल (OH समूह के लिए), -ऑन (C=O समूह के लिए), -एसिड (COOH समूह के लिए)।
  • फंक्शनल समूह के लिए उपसर्ग और प्रत्यय का चयन इस आधार पर किया जाता है कि वह मुख्य श्रृंखला का हिस्सा है या सहायक समूह के रूप में उपस्थित है।

7. डबल और ट्रिपल बॉन्ड का नामकरण (Naming Double and Triple Bonds):

  • यदि यौगिक में डबल बॉन्ड (C=C) या ट्रिपल बॉन्ड (C≡C) हो, तो इनकी स्थिति को भी नामकरण में शामिल किया जाता है।
  • डबल बॉन्ड के लिए -एन (e.g., ब्यूट-1-एन) और ट्रिपल बॉन्ड के लिए -इन (e.g., ब्यूट-1-इन) प्रत्यय का प्रयोग होता है।

8. स्टिरियोकेमिस्ट्री (Stereochemistry):

  • यदि यौगिक में स्टिरियोकेमिकल जानकारी दी जानी हो, तो उसे नामकरण में शामिल किया जाता है। जैसे – E/Z, R/S, cis/trans आदि का प्रयोग।

उदाहरण:

  1. CH3-CH2-OH को इथेनॉल कहा जाता है। इसमें मुख्य श्रृंखला इथेन (2 कार्बन) है, और OH फंक्शनल समूह को -ओल प्रत्यय के रूप में जोड़ा गया है।
  2. CH3-CH=CH-CH3 को ब्यूट-2-एन कहा जाता है। इसमें 4 कार्बन की श्रृंखला है, और डबल बॉन्ड 2वें कार्बन पर है।

निष्कर्ष:

IUPAC नामकरण विधियाँ रासायनिक यौगिकों को व्यवस्थित और तार्किक ढंग से नामित करने का एक महत्वपूर्ण साधन हैं। यह प्रणाली रासायनिक संरचनाओं की स्पष्टता और समझने में सहायता करती है, जिससे वैज्ञानिक संवाद और अध्ययन में एकरूपता आती है।

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