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bsc 3rd year chemistry practical old course

bsc 3rd year chemistry.इस ब्लॉग में बीएससी 3 rd के ओल्ड केमिस्ट्री प्रैक्टिकल मिलेंगे जो परीक्षा में लिखना हैं |

bsc 3rd year chemistry
bsc 3rd year chemistry

Table of Contents

bsc 3rd year chemistry practical old course

 

Practical No.1

तांबा (II) सल्फेट मोनोहाइड्रेट (CuSO₄.5H₂O) का उपयोग करके टेट्रा-कॉपर (II) सल्फेट मोनोहाइड्रेट के समिश्रण यौगिक (complex compound) का निर्माण कैसे करें? प्रक्रिया के साथ इसकी तैयारी को विस्तार से समझाएँ।

प्रयोग: टेट्रा-कॉपर (II) सल्फेट मोनोहाइड्रेट (Tetra-Copper(II) Sulphate Monohydrate) का निर्माण

उद्देश्य:

तांबा (II) सल्फेट मोनोहाइड्रेट का उपयोग कर टेट्रा-कॉपर (II) सल्फेट मोनोहाइड्रेट का निर्माण करना और इस प्रक्रिया के दौरान उभरने वाले रासायनिक गुणों का अध्ययन करना।

आवश्यक सामग्री:

  1. तांबा (II) सल्फेट मोनोहाइड्रेट (CuSO₄.5H₂O) – 10 ग्राम
  2. सोडियम हाइड्रोक्साइड (NaOH) का घोल
  3. आसुत जल (Distilled Water)
  4. कांच की छड़ी (Glass Rod)
  5. नापने वाले सिलिंडर (Measuring Cylinder)
  6. ब्यूरेट और पिपेट
  7. फिल्टर पेपर और फिल्ट्रेशन सेटअप
  8. गर्म प्लेट या बर्नर

सिद्धांत:

कॉपर (II) सल्फेट एक नीला क्रिस्टलीय ठोस है जो पानी में घुलनशील होता है और जलीय घोल में कॉपर (II) आयन (Cu²⁺) तथा सल्फेट आयन (SO₄²⁻) में विभाजित होता है। जब सोडियम हाइड्रोक्साइड (NaOH) को इस घोल में मिलाया जाता है, तब कॉपर (II) हाइड्रॉक्साइड (Cu(OH)₂) के रूप में अवक्षेप बनता है। इसे बाद में हीटिंग द्वारा पुनः क्रिस्टलीकरण किया जाता है ताकि टेट्रा-कॉपर (II) सल्फेट मोनोहाइड्रेट प्राप्त हो सके।

प्रक्रिया:

  1. सबसे पहले, 10 ग्राम तांबा (II) सल्फेट मोनोहाइड्रेट (CuSO₄.5H₂O) को एक बीकर में लें और इसमें 50 मिली आसुत जल मिलाएँ।
  2. घोल को अच्छी तरह मिलाएँ ताकि तांबा (II) सल्फेट पूरी तरह घुल जाए। यह घोल नीले रंग का होगा।
  3. धीरे-धीरे सोडियम हाइड्रोक्साइड (NaOH) घोल को ब्यूरेट की मदद से इस घोल में मिलाएँ। ध्यान रखें कि इसे धीरे-धीरे मिलाया जाए, और निरंतर हिलाते रहें।
  4. आप देखेंगे कि तांबा (II) हाइड्रॉक्साइड (Cu(OH)₂) का नीला अवक्षेप बनने लगेगा। इसे पूरी तरह बनने तक NaOH का घोल मिलाते रहें।
  5. अब इस अवक्षेप को फिल्ट्रेशन सेटअप का उपयोग कर छान लें और तांबा (II) हाइड्रॉक्साइड को फिल्टर पेपर पर एकत्र करें।
  6. फिल्टर किए गए ठोस को सावधानीपूर्वक एक बीकर में डालें और इसे हल्का गर्म करें। इस दौरान टेट्रा-कॉपर (II) सल्फेट मोनोहाइड्रेट का निर्माण होगा।
  7. इसे ठंडा होने दें, और क्रिस्टलीकरण होने दें। प्राप्त क्रिस्टल को संग्रहित करें।

परिणाम:

इस प्रक्रिया के माध्यम से, टेट्रा-कॉपर (II) सल्फेट मोनोहाइड्रेट का निर्माण किया जाएगा, जो एक नीले रंग के क्रिस्टल के रूप में प्राप्त होगा।

निष्कर्ष:

तांबा (II) सल्फेट मोनोहाइड्रेट के घोल में सोडियम हाइड्रॉक्साइड मिलाने से तांबा (II) हाइड्रॉक्साइड का अवक्षेप बनता है। इसके बाद इस ठोस का गर्मी के प्रभाव में क्रिस्टलीकरण कराकर टेट्रा-कॉपर (II) सल्फेट मोनोहाइड्रेट का निर्माण सफलतापूर्वक किया गया।

Practical No.2

जॉब्स विधि का उपयोग करके कॉम्प्लेक्स (समिश्रण यौगिक) की स्टॉयकीओमेट्री (stoichiometry) निर्धारित करने की प्रक्रिया को विस्तार से समझाएँ। प्रयोग में शामिल प्रक्रिया और चरणों का विवरण दें।

प्रयोग: जॉब्स विधि द्वारा समिश्रण यौगिक की स्टॉयकीओमेट्री की पहचान

उद्देश्य:

जॉब्स विधि (Jobs Method) का उपयोग करके एक समिश्रण यौगिक (complex compound) की स्टॉयकीओमेट्री (stoichiometry) निर्धारित करना, जिसमें धातु आयन और लिगैंड के बीच संबंधों का अध्ययन किया जाएगा।

सिद्धांत:

जॉब्स विधि, जिसे कंटिन्युअस वेरिएशन विधि (continuous variation method) भी कहा जाता है, का उपयोग धातु और लिगैंड के बीच बनने वाले समिश्रण यौगिक की स्टॉयकीओमेट्री का निर्धारण करने के लिए किया जाता है। इस विधि में विभिन्न सांद्रताओं के घोल तैयार किए जाते हैं, जिनमें धातु और लिगैंड का मोल अनुपात बदलता है, लेकिन कुल सांद्रता समान रहती है। अधिकतम अवशोषण (absorbance) वाले घोल से धातु और लिगैंड के अनुपात का निर्धारण किया जाता है।

आवश्यक सामग्री:

  1. धातु आयन का घोल (Metal Ion Solution, जैसे Fe³⁺ या Cu²⁺)
  2. लिगैंड का घोल (Ligand Solution, जैसे अमोनिया, ईडीटीए)
  3. UV-visible स्पेक्ट्रोफोटोमीटर
  4. मापने वाले सिलिंडर
  5. बीकर और टेस्ट ट्यूब
  6. कांच की छड़ी (Glass Rod)
  7. पाइपेट

प्रक्रिया:

  1. धातु आयन और लिगैंड के घोल तैयार करें:
    • एक निश्चित सांद्रता (C) के धातु आयन और लिगैंड के घोल तैयार करें, जैसे 0.1 M।
  2. मिश्रण तैयार करें:
    • धातु आयन और लिगैंड के अलग-अलग अनुपात के घोल तैयार करें। उदाहरण के लिए:
      • धातु आयन : लिगैंड = 1:9, 2:8, 3:7, 4:6, 5:5, 6:4, 7:3, 8:2, 9:1
    • ध्यान दें कि इन सभी मिश्रणों में धातु आयन और लिगैंड की कुल सांद्रता समान होनी चाहिए।
  3. घोल का अवशोषण मापें:
    • प्रत्येक मिश्रण का अवशोषण (absorbance) UV-visible स्पेक्ट्रोफोटोमीटर की मदद से मापें। यह अवशोषण समिश्रण यौगिक के बनने का प्रमाण होगा।
    • प्रत्येक मिश्रण के लिए अवशोषण मापें और उनके मानों को लिख लें।
  4. अवशोषण का ग्राफ बनाएं:
    • धातु आयन के मोल भाग (mole fraction) के विरुद्ध अवशोषण मानों का ग्राफ बनाएं।
    • इस ग्राफ में अवशोषण का अधिकतम बिंदु वह बिंदु होगा जहाँ समिश्रण यौगिक का धातु-लिगैंड अनुपात प्राप्त होता है।
  5. समिश्रण यौगिक की स्टॉयकीओमेट्री का निर्धारण:
    • जिस बिंदु पर अवशोषण अधिकतम होगा, वही धातु और लिगैंड के सही अनुपात को दर्शाएगा। उदाहरण के लिए, यदि अधिकतम अवशोषण धातु आयन के मोल भाग 0.4 पर होता है, तो धातु और लिगैंड का अनुपात 2:3 होगा।

परिणाम:

जॉब्स विधि का उपयोग कर समिश्रण यौगिक के धातु और लिगैंड के अनुपात का सफलतापूर्वक निर्धारण किया गया। अवशोषण अधिकतम बिंदु से यह ज्ञात हुआ कि धातु और लिगैंड का स्टॉयकीओमेट्रिक अनुपात, उदाहरण के लिए, 2:3 है।

निष्कर्ष:

जॉब्स विधि का प्रयोग समिश्रण यौगिक की स्टॉयकीओमेट्री का निर्धारण करने के लिए एक प्रभावी तकनीक है। इस विधि के माध्यम से धातु और लिगैंड के बीच सही अनुपात का निर्धारण अवशोषण माप द्वारा किया जाता है।

Practical No.3

किसी ठोस द्विघटकीय मिश्रण (Binary Mixture) में दो ठोस यौगिकों को अलग करने, पहचानने, और उनके डेरिवेटिव्स (derivatives) तैयार करने की प्रक्रिया को विस्तार से समझाएँ। प्रत्येक चरण के लिए विस्तृत विवरण दें।

प्रयोग: ठोस द्विघटकीय मिश्रण का पृथक्करण, पहचान, और डेरिवेटिव्स की तैयारी

उद्देश्य:

किसी ठोस द्विघटकीय मिश्रण में दो ठोस यौगिकों को अलग करना, उनकी पहचान करना, और उनके डेरिवेटिव्स तैयार करना।

सिद्धांत:

द्विघटकीय मिश्रण में उपस्थित दो ठोस यौगिकों को उनके भौतिक और रासायनिक गुणों के आधार पर अलग किया जाता है। सबसे पहले एक उपयुक्त विलायक (solvent) का उपयोग करके दोनों घटकों का अलग-अलग घोल तैयार किया जाता है। इसके बाद उनके रासायनिक परीक्षण के माध्यम से पहचान की जाती है। अंत में, इन यौगिकों के डेरिवेटिव्स की तैयारी की जाती है।

आवश्यक सामग्री:

  1. ठोस द्विघटकीय मिश्रण (जैसे, बेंजॉइक एसिड और नाफ्थलीन का मिश्रण)
  2. इथर (Ether), एथेनॉल (Ethanol), पानी (Water)
  3. फिल्टर पेपर
  4. फिल्ट्रेशन सेटअप (साधारण और वक्यूम फिल्ट्रेशन)
  5. बीकर, पाइपेट, और ग्लास रॉड
  6. गर्म प्लेट
  7. जल स्नान (Water Bath)
  8. बेंजॉयल क्लोराइड, हाइड्रोक्लोरिक एसिड, सोडियम बाइकार्बोनेट (सोडा)
  9. पीएच पेपर
  10. स्पॉट प्लेट, केपिलरी ट्यूब

प्रक्रिया:

चरण 1: पृथक्करण (Separation)

  1. विलायक का चयन: मिश्रण के प्रत्येक घटक के अलग-अलग घुलनशीलता गुण होते हैं। उदाहरण के लिए, बेंजॉइक एसिड (Benzoic acid) पानी में घुलनशील होता है जबकि नाफ्थलीन (Naphthalene) इथर में घुलनशील होता है।
  2. प्राथमिक फिल्ट्रेशन:
    • मिश्रण को इथर में घोलें ताकि नाफ्थलीन घुल जाए।
    • इथर में घोलने के बाद, इसे एक फिल्टर पेपर से छान लें। छानने के बाद, इथर में घुला हुआ नाफ्थलीन और ठोस बेंजॉइक एसिड अलग हो जाएगा।
  3. घटक का पृथक्करण:
    • नाफ्थलीन को इथर से वाष्पीकरण (evaporation) द्वारा अलग करें। इथर को गर्म करके उड़ाएँ, जिससे नाफ्थलीन क्रिस्टलीकृत हो जाएगा।
    • बेंजॉइक एसिड को पानी में घोलकर और इसे ठंडा करके पुनः क्रिस्टलीकृत करें।

चरण 2: पहचान (Identification)

  1. बेंजॉइक एसिड की पहचान:
    • बेंजॉइक एसिड के जलीय घोल का पीएच टेस्ट करें। यह एक अम्लीय घोल है, जो पीएच पेपर पर 4-5 के आसपास होगा।
    • बेंजॉइक एसिड के लिए फीरियर ट्राईक्लोराइड टेस्ट (Ferric Chloride Test) करें। इसमें बैंगनी रंग बनता है, जो बेंजॉइक एसिड की पहचान है।
  2. नाफ्थलीन की पहचान:
    • नाफ्थलीन का कोई विशेष रासायनिक परीक्षण नहीं है, लेकिन इसे क्रिस्टलीय रूप में पहचाना जा सकता है। नाफ्थलीन कमरे के तापमान पर सफेद क्रिस्टल के रूप में दिखाई देता है और इसमें विशिष्ट गंध होती है।

चरण 3: डेरिवेटिव्स की तैयारी (Preparation of Derivatives)

  1. बेंजॉइक एसिड का डेरिवेटिव (Benzoyl Derivative):
    • बेंजॉइक एसिड को बेंजॉयल क्लोराइड के साथ प्रतिक्रिया कराएँ।
    • 1 ग्राम बेंजॉइक एसिड को 5 मिलीलीटर एथेनॉल में घोलें।
    • इसमें 1-2 मिली बेंजॉयल क्लोराइड और कुछ बूंदे हाइड्रोक्लोरिक एसिड डालें।
    • इस मिश्रण को गर्म करें। यह प्रतिक्रिया बेंज़ाइल एसिड के डेरिवेटिव (Benzoyl Derivative) का निर्माण करेगी, जिसे फिल्ट्रेशन द्वारा पृथक किया जा सकता है।
  2. नाफ्थलीन का डेरिवेटिव (Naphthalene Derivative):
    • नाफ्थलीन से एनाइट्रो नाफ्थलीन तैयार करें।
    • नाफ्थलीन को नाइट्रिक एसिड के साथ प्रतिक्रिया कराएँ।
    • 1 ग्राम नाफ्थलीन को नाइट्रिक एसिड और सल्फ्यूरिक एसिड के मिश्रण में रखें।
    • इस मिश्रण को धीरे-धीरे गर्म करें। इसमें एनाइट्रो नाफ्थलीन का निर्माण होगा, जिसे ठंडा करके पुनः क्रिस्टलीकृत किया जा सकता है।

परिणाम:

इस प्रक्रिया के अंतर्गत, ठोस द्विघटकीय मिश्रण को सफलतापूर्वक अलग किया गया और दोनों घटकों की पहचान की गई। इसके बाद उनके डेरिवेटिव्स को तैयार कर उनकी शुद्धता की पुष्टि की गई।

निष्कर्ष:

द्विघटकीय मिश्रणों के अलगाव और पहचान के लिए विभिन्न विधियों का उपयोग किया जाता है। प्रत्येक घटक के भिन्न घुलनशीलता और रासायनिक प्रतिक्रियाओं के आधार पर उन्हें अलग करना और उनके डेरिवेटिव्स बनाना एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है।

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