ultraviolet absorption spectroscopy|अल्ट्रावायलेट (UV) और दृश्यमान (Visible) स्पेक्ट्रोस्कोपी का सिद्धांत इलेक्ट्रॉनिक संक्रमण पर आधारित है। जब एक यौगिक पर UV या दृश्यमान प्रकाश की किरणें पड़ती हैं, तो यौगिक के अणु या आयन इस ऊर्जा को अवशोषित करते हैं और निम्नतम ऊर्जा स्थिति (Ground State) से उच्च ऊर्जा स्थिति (Excited State) में चले जाते हैं। यह अवशोषण इलेक्ट्रॉनों के ऊर्जा स्तरों में संक्रमण के कारण होता है।
Table of Contents
Toggleultraviolet absorption spectroscopy
मुख्य सिद्धांत:
- ऊर्जा स्तर और इलेक्ट्रॉनिक संक्रमण:
- अणुओं में इलेक्ट्रॉनों के विभिन्न ऊर्जा स्तर होते हैं (जैसे σ,π,n इत्यादि)।
- जब UV या दृश्यमान प्रकाश इन अणुओं पर पड़ता है, तो फोटॉन की ऊर्जा (E=hν) के बराबर ऊर्जा वाले इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा स्तर पर पहुँचते हैं।
- यह ऊर्जा परिवर्तन इस प्रकार व्यक्त किया जाता है: ΔE=Eexcited−Eground=hν
- जहां h प्लांक का स्थिरांक है और ν प्रकाश की आवृत्ति है।
- UV और Visible क्षेत्र:
- UV क्षेत्र: 200−400nm
- दृश्यमान क्षेत्र: 400−800nm
- अवशोषण स्पेक्ट्रम:
- अवशोषित फोटॉनों की तीव्रता के आधार पर स्पेक्ट्रम उत्पन्न होता है।
- स्पेक्ट्रम को λmax के रूप में मापा जाता है, जो वह तरंगदैर्ध्य है जहाँ अवशोषण अधिकतम होता है।
इलेक्ट्रॉनिक संक्रमण के प्रकार:
- σ→σ∗ संक्रमण:
- यह सबसे ऊर्जावान संक्रमण है।
- σ-बॉन्डेड इलेक्ट्रॉन σ∗-एंटीबॉन्डिंग ऑर्बिटल में जाते हैं।
- यह संक्रमण 150−200nm पर होता है (UV क्षेत्र के बाहर)।
- π→π∗ संक्रमण:
- π-बॉन्डेड इलेक्ट्रॉन π∗-एंटीबॉन्डिंग ऑर्बिटल में जाते हैं।
- यह संक्रमण उन यौगिकों में होता है जिनमें π-बॉन्डेड इलेक्ट्रॉन्स (जैसे डबल बॉन्ड, एरोमैटिक सिस्टम) होते हैं।
- λmax: 200−400nm
- n→σ∗ संक्रमण:
- अकेले इलेक्ट्रॉनों (non-bonding electrons) से σ∗-एंटीबॉन्डिंग ऑर्बिटल में संक्रमण।
- यह ट्रांसपेरेंट यौगिकों (जैसे अल्कोहल, एथर) में देखा जाता है।
- λmax: 150−250nm
- n→π∗ संक्रमण:
- अकेले इलेक्ट्रॉनों से π∗-एंटीबॉन्डिंग ऑर्बिटल में संक्रमण।
- यह कार्बोनाइल यौगिकों और अन्य समूहों में देखा जाता है जिनमें C=O, C=N आदि हों।
- λmax: 200−400nm
यौगिकों में इलेक्ट्रॉनिक संक्रमण का अध्ययन:
- संयुक्त यौगिक (Conjugated Compounds):
- संयुग्मित (Conjugated) डबल बॉन्ड या एरोमैटिक सिस्टम अधिक लंबी तरंगदैर्ध्य (λmax) पर अवशोषण दिखाते हैं।
- संयुग्मन बढ़ने से λmax बढ़ता है।
सही अनुक्रम इस प्रकार होना चाहिए:
1,3-ब्यूटाडीन (λmax=217nm) < बेंजीन (λmax=254nm)
सही स्पष्टीकरण:
- 1,3-ब्यूटाडीन:
- इसमें केवल एक साधारण संयुग्मित प्रणाली (C=C−C=C) होती है।
- λmax=217nm होता है।
- इसका संयुग्मन (conjugation) सीमित है।
- बेंजीन:
- बेंजीन में π-इलेक्ट्रॉनों का पूर्ण चक्रीय संयुग्मन (aromatic conjugation) होता है।
- इसका λmax=254nm होता है।
- अधिक स्थायित्व और विस्तृत संयुग्मन के कारण इसका λmax ब्यूटाडीन से अधिक होता है।
संयुग्मन और λmax:
संयुग्मन बढ़ने से λmax बढ़ता है, क्योंकि:
- ऊर्जा स्तरों का अंतर (ΔE) घटता है।
- निम्न ऊर्जा पर फोटॉन अवशोषित होते हैं।
- परिणामस्वरूप, अवशोषण लंबी तरंगदैर्ध्य (λ) पर शिफ्ट होता है।
नियम:
अधिक संयुग्मन⟹अधिक λmax
उदाहरण:
- 1,3-ब्यूटाडीन (λmax=217nm)
- बेंजीन (λmax=254nm)
- नेफ्थलीन (Naphthalene) (λmax=313nm)
सारांश:
जैसे-जैसे संयुग्मन बढ़ता है, λmax का मान बढ़ता जाता है। - 1,3-ब्यूटाडीन:
- कार्यात्मक समूहों का प्रभाव:
- इलेक्ट्रॉन-डोनर समूह (जैसे -OH, -OCH3) λmax को बढ़ाते हैं।
- इलेक्ट्रॉन-एट्रैक्टर समूह (जैसे -NO2, -COOH) λmax को घटाते हैं।
- सॉल्वेंट का प्रभाव:
- ध्रुवीय सॉल्वेंट्स में n→π∗ संक्रमण की तीव्रता घट जाती है क्योंकि सॉल्वेंट n-इलेक्ट्रॉन्स को स्थिर कर देते हैं।
- लेकिन π→π∗ संक्रमण पर बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ता।
UV स्पेक्ट्रोस्कोपी में उपयोग:
- संरचना निर्धारण:
- संयुग्मन और कार्यात्मक समूहों की पहचान।
- शुद्धता परीक्षण:
- संदूषण का पता लगाने के लिए।
- संवेदनशीलता:
- छोटी मात्रा में यौगिकों का विश्लेषण।
- गुणवत्ता नियंत्रण:
- औषधि निर्माण में उपयोग।
निष्कर्ष:
UV-Visible स्पेक्ट्रोस्कोपी एक शक्तिशाली तकनीक है जो अणुओं के इलेक्ट्रॉनिक संक्रमण को समझने और यौगिकों की संरचना, संयुग्मन और कार्यात्मक समूहों का अध्ययन करने में सहायता करती है।