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Crystal field theory postulates

Crystal field theory postulates

Crystal field theory (CFT) की प्रमुख विशेषताएँ, सीमाएँ और असफलताएँ: जानें कि CFT क्या है, इसके आयनिक मॉडल की सीमाएँ और स्प्लिटिंग के उदाहरणों के साथ,

[CoF6]3[CoF_6]^{3-}

और

[Co(NH3)6]3+[Co(NH_3)_6]^{3+}

के पैरामैग्नेटिज़्म और डायमैग्नेटिज़्म को कैसे समझा जाए।

Crystal field theory (CFT) यह मान्यता देती है कि ट्रांज़िशन मेटल कॉम्प्लेक्स की गुणधर्म, जैसे कि उनका रंग, चुम्बकीयता, और स्थिरता, मुख्य रूप से धातु कैशन के d ऑर्बिटल्स और आसपास के लिगैंड्स के बीच की परस्पर क्रिया पर निर्भर करते हैं, जिन्हें बिंदु आवेशों के रूप में माना जाता है।

CFT के प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:

  1. लिगैंड्स का निकट आना: ऑक्टाहेड्रल कॉम्प्लेक्स में, लिगैंड्स केंद्रिय धातु आयन के चारों ओर x, y, z अक्षों के साथ आते हैं, जिससे एक विद्युत-स्थैतिक क्षेत्र बनता है। इस परस्पर क्रिया के कारण धातु आयन के d ऑर्बिटल्स की समान ऊर्जा को विभाजित किया जाता है, जिससे विभिन्न ऊर्जा स्तरों में उनका विभाजन होता है।
  2. Crystal field theory postulates
    Crystal field theory postulates
  3. क्रिस्टल फील्ड स्टैबिलाइजेशन एनर्जी (CFSE): इन ऑर्बिटल्स के सेटों के बीच ऊर्जा का अंतर क्रिस्टल फील्ड स्प्लिटिंग एनर्जी (
    Δo ऑक्टाहेड्रल कॉम्प्लेक्स के लिए) के रूप में जाना जाता है।
     

क्रिस्टल फील्ड थ्योरी की प्रमुख विशेषताएँ और सीमाएँ:

प्रमुख विशेषताएँ:

  1. ऑर्बिटल विभाजन: धातु आयन के d ऑर्बिटल्स का विभाजन, जिससे और ऑर्बिटल्स बनते हैं
  2. रंग और चुम्बकीयता: कॉम्प्लेक्स के रंग और चुम्बकीय गुणों की व्याख्या।
  3. क्रिस्टल फील्ड स्टैबिलाइजेशन एनर्जी (CFSE): कॉम्प्लेक्स की स्थिरता का आकलन करने के लिए।

सीमाएँ:

  1. कोवेलेंट बॉन्डिंग को नजरअंदाज करना: केवल इलेक्ट्रोस्टैटिक परस्पर क्रिया पर ध्यान केंद्रित करना।
  2. सभी लिगैंड्स को बिंदु आवेश मानना: लिगैंड्स की संरचना और उनकी बंधन शक्ति की उपेक्षा।
  3. अर्धसूत्रीय भविष्यवाणी: थ्योरी में कुछ अपवादों की संभावना है, जो सभी कॉम्प्लेक्स पर लागू नहीं होती।

What is crystal field theory?

Crystal field theory (CFT) एक सिद्धांत है जो ट्रांज़िशन मेटल कॉम्प्लेक्स के रंग, चुम्बकीयता, और स्थिरता जैसे गुणों की व्याख्या करता है। इस सिद्धांत के अनुसार, जब लिगैंड्स (जो अणु या आयन होते हैं) धातु आयन के चारों ओर आते हैं, तो वे धातु आयन के d ऑर्बिटल्स के साथ विद्युत-स्थैतिक (इलेक्ट्रोस्टैटिक) परस्पर क्रिया करते हैं। यह परस्पर क्रिया d ऑर्बिटल्स के ऊर्जा स्तरों को विभाजित करती है, जिससे उनकी समानता (डिजेनेरेसी) समाप्त हो जाती है और विभिन्न ऊर्जा स्तर उत्पन्न होते हैं।

इस विभाजन के परिणामस्वरूप, धातु कॉम्प्लेक्स के विभिन्न गुणधर्म, जैसे कि उनका रंग और चुम्बकीयता, इस बात पर निर्भर करते हैं कि d ऑर्बिटल्स में इलेक्ट्रॉन्स किस प्रकार से व्यवस्थित होते हैं और वे कितनी ऊर्जा वाले हैं।

how will I do the splitting of orbitals of any given complex?

किसी भी दिए गए कॉम्प्लेक्स के ऑर्बिटल्स का विभाजन करने के लिए, निम्नलिखित चरणों का पालन करें:

  1. कॉम्प्लेक्स की ज्यामिति पहचानें: सबसे पहले, यह समझें कि कॉम्प्लेक्स की ज्यामिति क्या है, जैसे ऑक्टाहेड्रल, टेट्राहेड्रल, या स्क्वायर-प्लानर। ज्यामिति के आधार पर d ऑर्बिटल्स का विभाजन अलग-अलग होता है।
  2. Crystal field theory postulates
    Crystal field theory postulates
  3. लिगैंड्स और उनके प्रभाव को ध्यान में रखें: लिगैंड्स की प्रकृति (जैसे कि वे मजबूत या कमजोर फील्ड लिगैंड्स हैं) यह निर्धारित करती है कि विभाजन कितना बड़ा होगा। मजबूत फील्ड लिगैंड्स अधिक विभाजन उत्पन्न करते हैं, जबकि कमजोर फील्ड लिगैंड्स कम विभाजन करते हैं।
  4. क्रिस्टल फील्ड स्प्लिटिंग डायग्राम बनाएं:
    • सबसे पहले, d ऑर्बिटल्स की मूल स्थिति से शुरू करें।
    • फिर, कॉम्प्लेक्स की ज्यामिति के आधार पर ऑर्बिटल्स को उच्च और निम्न ऊर्जा स्तरों में विभाजित करें।
    • विभाजन के बाद, ऑर्बिटल्स को इस प्रकार से व्यवस्थित करें कि उच्च ऊर्जा वाले ऑर्बिटल्स ऊपर और निम्न ऊर्जा वाले ऑर्बिटल्स नीचे हों।
  5. इलेक्ट्रॉन्स की व्यवस्था करें: विभाजित ऑर्बिटल्स में इलेक्ट्रॉन्स को उनकी ऊर्जा के अनुसार व्यवस्थित करें। पहले निम्न ऊर्जा वाले ऑर्बिटल्स को भरें, फिर उच्च ऊर्जा वाले ऑर्बिटल्स को।

यह प्रक्रिया आपको किसी भी कॉम्प्लेक्स के ऑर्बिटल्स का विभाजन और उनमें इलेक्ट्रॉन्स की सही व्यवस्था करने में मदद करेगी।

What is the assumption of crystal field theory?

Crystal field theory (CFT) की मुख्य मान्यताएँ (अस्थापनाएँ) निम्नलिखित हैं:

  1. लिगैंड्स को बिंदु आवेश मानना: इस सिद्धांत में यह माना जाता है कि लिगैंड्स धातु आयन के चारों ओर स्थित बिंदु आवेश (point charges) हैं, जो केवल विद्युत-स्थैतिक (इलेक्ट्रोस्टैटिक) परस्पर क्रिया करते हैं। इसका अर्थ है कि लिगैंड्स के साथ धातु आयन का बंधन पूरी तरह से आयनिक होता है।
  2. कोवेलेंट बंधन की उपेक्षा: CFT में धातु-लिगैंड बंधन में कोवेलेंट प्रकृति को नजरअंदाज किया जाता है। यह मान लिया जाता है कि धातु और लिगैंड्स के बीच कोई साझा इलेक्ट्रॉन्स नहीं होते, यानी बंधन पूरी तरह आयनिक होता है।
  3. d ऑर्बिटल्स का विभाजन: यह मान लिया जाता है कि जब लिगैंड्स धातु आयन के चारों ओर आते हैं, तो धातु के d ऑर्बिटल्स की समान ऊर्जा समाप्त हो जाती है और वे विभाजित हो जाते हैं। विभाजन की यह प्रक्रिया ज्यामिति और लिगैंड्स की प्रकृति पर निर्भर करती है।
  4. धातु आयन स्थिर रहता है: यह माना जाता है कि धातु आयन का स्थान और उसकी संरचना स्थिर है, और लिगैंड्स के कारण उत्पन्न फील्ड केवल d ऑर्बिटल्स पर प्रभाव डालता है।

ये मान्यताएँ CFT के आधार पर ट्रांज़िशन मेटल कॉम्प्लेक्स के गुणधर्मों की व्याख्या करने में सहायक होती हैं।

What are the limitations of the crystal field theory?

Crystal field theory (CFT) की प्रमुख सीमाएँ निम्नलिखित हैं:

  1. कोवेलेंट बंधन की अनदेखी: CFT केवल धातु और लिगैंड्स के बीच आयनिक परस्पर क्रिया पर ध्यान देती है और कोवेलेंट बंधन को पूरी तरह से नजरअंदाज करती है। वास्तव में, कई कॉम्प्लेक्स में धातु-लिगैंड बंधन में कोवेलेंट प्रकृति भी होती है, जिसे CFT सही तरीके से व्याख्या नहीं कर पाती।
  2. लिगैंड्स को बिंदु आवेश मानना: CFT में लिगैंड्स को बिंदु आवेश के रूप में माना जाता है, जो कि एक सरल धारणा है। लिगैंड्स की वास्तविक संरचना और उनके इलेक्ट्रॉनिक गुणों का प्रभाव इस सिद्धांत में समाहित नहीं होता।
  3. स्पेक्ट्रोकेमिकल सीरीज की व्याख्या में सीमितता: CFT स्पेक्ट्रोकेमिकल सीरीज को पूरी तरह से समझाने में सक्षम नहीं है, जो लिगैंड्स की बंधन शक्ति के अनुसार क्रिस्टल फील्ड स्प्लिटिंग ऊर्जा को दर्शाती है।
  4. ऑर्बिटल्स के विभाजन की साधारण व्याख्या: CFT में d ऑर्बिटल्स का विभाजन ज्यामिति के आधार पर सरल तरीके से किया जाता है, लेकिन कुछ मामलों में विभाजन का पैटर्न और उसकी जटिलता को सही ढंग से व्याख्या नहीं किया जा सकता।
  5. लिगैंड फील्ड थ्योरी के साथ तुलना: लिगैंड फील्ड थ्योरी (LFT), जो CFT का एक उन्नत रूप है, CFT की तुलना में अधिक सटीक व्याख्या प्रदान करती है क्योंकि यह कोवेलेंट बंधन को भी ध्यान में रखती है।

इन सीमाओं के कारण, CFT केवल ट्रांज़िशन मेटल कॉम्प्लेक्स के कुछ पहलुओं को समझाने में सक्षम है और इसे अन्य सिद्धांतों के साथ मिलाकर प्रयोग किया जाता है।

give example for undaerstand this concept

आयनिक मॉडल की सीमाओं को समझने के लिए, हम एक उदाहरण पर विचार कर सकते हैं:

उदाहरण:

[Co(NH3)6]3+[Co(NH_3)_6]^{3+}

 

आयनिक मॉडल के अनुसार:

  • आयनिक मॉडल कहता है कि कोबाल्ट (C03+) और अमोनिया (NH3) के बीच बंधन पूरी तरह से आयनिक है।
    NH_3
  • इस मॉडल के अनुसार,( 
  • d ऑर्बिटल्स विभाजित हो जाते हैं, और हम इसके गुणों, जैसे कि इसका रंग और चुम्बकीयता, की व्याख्या कर सकते हैं।
  1. वास्तविकता में:
    • वास्तव में,
      में कोबाल्ट और अमोनिया के बीच का बंधन पूरी तरह से आयनिक नहीं है। इसमें कुछ कोवेलेंट प्रकृति भी होती है, क्योंकि अमोनिया एक लिगैंड के रूप में अपनी इलेक्ट्रॉन डोनर क्षमता के कारण कोबाल्ट के d ऑर्बिटल्स के साथ साझा करता है।
       
    • आयनिक मॉडल इस कोवेलेंट बंधन को नजरअंदाज कर देता है, जिससे यह सही ढंग से इस कॉम्प्लेक्स के स्पेक्ट्रा या बंधन ऊर्जा की व्याख्या नहीं कर सकता।
    • उदाहरण के लिए, स्पेक्ट्रोकेमिकल सीरीज के अनुसार, NH₃ एक मध्यम शक्ति वाला लिगैंड है, जो कि आयनिक मॉडल की अपेक्षा से अधिक जटिल बंधन ऊर्जा और d ऑर्बिटल्स के विभाजन का कारण बनता है।

निष्कर्ष: आयनिक मॉडल

[Co(NH3)6]3+[Co(NH_3)_6]^{3+}

जैसे कॉम्प्लेक्सों में बंधन की पूरी तस्वीर प्रदान नहीं करता क्योंकि यह कोवेलेंट बंधन को शामिल नहीं करता। इस प्रकार, यह मॉडल कुछ गुणों की व्याख्या करने में विफल हो जाता है, जो कि लिगैंड फील्ड थ्योरी (LFT) जैसे उन्नत मॉडल द्वारा बेहतर ढंग से समझाई जा सकती है।

How does this theory account for the fact that [CoF6] 3– is paramagnetic but [Co(NH3) 6] 3+ is diamagnetic though both are octahedral.

Crystal field theory (CFT) इस तथ्य की व्याख्या करती है कि पैरामैग्नेटिक है जबकि डायमैग्नेटिक है, हालांकि दोनों ऑक्टाहेड्रल कॉम्प्लेक्स हैं।

[CoF_6]^{3-} [CoF_6]^{3-}

Crystal field theory postulates
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निष्कर्ष:

Crystal field theory postulates

इस प्रकार, लिगैंड्स की फील्ड स्ट्रेंथ के आधार पर d ऑर्बिटल्स के विभाजन और इलेक्ट्रॉन्स की व्यवस्था में अंतर के कारण इन दोनों कॉम्प्लेक्सों के चुम्बकीय गुणधर्म भिन्न होते हैं।

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