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sf4 structure and hybridization

sf4 structure and hybridization.SF₄ (सल्फर टेट्राफ्लोराइड) अणु की “सी-सॉ” आकृति, हाइब्रिडाइजेशन, इलेक्ट्रॉनिक विन्यास, बंधन कोण और ध्रुवीयता के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।

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छवि में SF₄ अणु की संरचना और उसके विभिन्न ऑर्बिटल्स की हाइब्रिडाइज़ेशन की प्रक्रिया के बारे में जानकारी दी गई है। यह प्रक्रिया बताती है कि SF₄ अणु में सल्फर (S) के ऑर्बिटल्स किस प्रकार से मिलकर एक नया हाइब्रिड ऑर्बिटल बनाते हैं। यहाँ मुख्यतः sp³d हाइब्रिडाइजेशन का उल्लेख है, जो SF₄ अणु की असामान्य आकृति के निर्माण में सहायक है।

इस पाठ के अनुसार:

  • (a) और (b) चित्रों में सल्फर परमाणु की प्रारंभिक इलेक्ट्रॉनिक संरचना दिखाई गई है।
  • (c) चित्र में sp³d हाइब्रिडाइजेशन के बाद की संरचना दर्शाई गई है।

पाठ में बताया गया है कि इस हाइब्रिडाइजेशन के बाद पाँच हाइब्रिड ऑर्बिटल्स बनते हैं, जिनमें से दो ऑर्बिटल्स (एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म वाले) क्षितिजीय (equatorial) दिशा में व्यवस्थित होते हैं। SF₄ अणु की आकृति त्रिकोणीय द्विपिरमिडीय (trigonal bipyramidal) या ‘सी-सॉ’ (sea-saw) प्रकार की होती है। इस संरचना में एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म की उपस्थिति के कारण ऑर्बिटल्स के बीच के कोण सामान्य से थोड़े अलग होते हैं, जैसे 90° की बजाय 89°, 120° की बजाय 118°, और 180° की बजाय 177° का कोण पाया जाता है।

ऑर्बिटल (कक्ष) एक परमाणु के भीतर उस क्षेत्र को दर्शाता है जहाँ किसी इलेक्ट्रॉन के पाए जाने की संभावना सबसे अधिक होती है। ऑर्बिटल्स को विभिन्न ऊर्जा स्तरों और उप-स्तरों (sublevels) में बाँटा गया है, जिन्हें s, p, d, और f के रूप में पहचाना जाता है।

ऑर्बिटल्स का विवरण:

  1. s ऑर्बिटल:
    • आकार: गोलाकार (spherical)।
    • एक s ऑर्बिटल में अधिकतम 2 इलेक्ट्रॉन होते हैं।
    • ऊर्जा स्तर के साथ इसका आकार बढ़ता है, यानी n=1, 2, 3 आदि के लिए s ऑर्बिटल का आकार बड़ा होता जाता है।
  2. p ऑर्बिटल:
    • आकार: डंबल (dumbbell) या घंटी की तरह।
    • p ऑर्बिटल्स तीन प्रकार के होते हैं: px, py, और pz। ये तीनों ऑर्बिटल्स एक-दूसरे के लंबवत स्थित होते हैं।
    • प्रत्येक p उप-स्तर में 3 ऑर्बिटल्स होते हैं और इनमें कुल 6 इलेक्ट्रॉन समा सकते हैं।
  3. d ऑर्बिटल:
    • आकार: चार लोब्स (lobes) के साथ या क्लोवर (cloverleaf) जैसा।
    • d ऑर्बिटल्स पांच प्रकार के होते हैं: dxy, dxz, dyz, dx²-y², और dz²।
    • एक d उप-स्तर में 5 ऑर्बिटल्स होते हैं और इनमें कुल 10 इलेक्ट्रॉन होते हैं।
  4. f ऑर्बिटल:
    • आकार: अधिक जटिल और अत्यधिक लोब्स वाले।
    • f ऑर्बिटल्स सात प्रकार के होते हैं।
    • एक f उप-स्तर में 7 ऑर्बिटल्स होते हैं और इनमें कुल 14 इलेक्ट्रॉन होते हैं।

ऑर्बिटल्स का महत्व:

ऑर्बिटल्स किसी भी परमाणु की रासायनिक और भौतिक गुणधर्मों को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। विभिन्न ऑर्बिटल्स की ऊर्जा और उनके भीतर इलेक्ट्रॉनों का वितरण यह तय करता है कि कोई परमाणु किस प्रकार के बंधनों का निर्माण करेगा, और उसकी संरचना कैसी होगी।

ऑर्बिटल्स का हाइब्रिडाइजेशन, जैसा कि SF₄ अणु के मामले में देखा गया, विभिन्न ऑर्बिटल्स के मिलन से नए ऑर्बिटल्स का निर्माण होता है, जो अणु की विशेषता और आकृति को निर्धारित करता है।

अर्ध-भरी हुई ऑर्बिटल (Half-Filled Orbital) एक ऐसी स्थिति है जिसमें किसी ऑर्बिटल उप-स्तर में इलेक्ट्रॉनों की संख्या पूरी तरह से नहीं होती है, बल्कि यह ऑर्बिटल अपने अधिकतम क्षमता के आधे हिस्से से भरी होती है। इसका मतलब है कि इलेक्ट्रॉनों की संख्या इस तरह होती है कि प्रत्येक ऑर्बिटल में एक-एक इलेक्ट्रॉन होता है, बिना किसी युग्म के।

अर्ध-भरी हुई ऑर्बिटल की विशेषताएँ:

  1. स्थिरता (Stability):
    • अर्ध-भरी हुई ऑर्बिटल्स की स्थिति को अक्सर स्थिर माना जाता है। यह स्थिरता इलेक्ट्रॉनों के आपसी विकर्षण (repulsion) के न्यूनतम होने से उत्पन्न होती है, क्योंकि सभी इलेक्ट्रॉन समान ऊर्जा वाले ऑर्बिटल्स में एकल रूप में स्थित होते हैं।
    • उदाहरण: 3d⁵ और 4f⁷ जैसी संरचनाएँ अर्ध-भरी हुई स्थिति में अधिक स्थिर मानी जाती हैं।
  2. हंड्स का नियम (Hund’s Rule):
    • हंड्स के नियम के अनुसार, समान ऊर्जा वाले ऑर्बिटल्स (जैसे p, d, f उप-स्तर) में पहले प्रत्येक ऑर्बिटल में एक-एक इलेक्ट्रॉन भरे जाते हैं और फिर युग्मन शुरू होता है। यह नियम इस आधार पर काम करता है कि अधिकतम समान-स्पिन वाले इलेक्ट्रॉनों के साथ एक अर्ध-भरी हुई स्थिति ऊर्जा की दृष्टि से अधिक स्थिर होती है।
  3. इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (Electronic Configuration):
    • कुछ तत्वों में, जैसे क्रोमियम (Cr: [Ar] 3d⁵ 4s¹) और तांबा (Cu: [Ar] 3d¹⁰ 4s¹), अर्ध-भरी हुई और पूरी तरह भरी हुई ऑर्बिटल्स को प्राप्त करने के लिए इलेक्ट्रॉन विन्यास में अपवाद होते हैं। यह अपवाद अर्ध-भरी हुई d या f ऑर्बिटल्स के साथ अधिक स्थिरता के कारण होता है।
  4. रासायनिक गुणधर्म (Chemical Properties):
    • अर्ध-भरी हुई ऑर्बिटल्स तत्वों की रासायनिक प्रतिक्रियाओं को प्रभावित कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, अर्ध-भरी हुई d ऑर्बिटल्स वाले तत्व संक्रमण धातुओं के रूप में जाने जाते हैं और ये विभिन्न जटिलताओं (complexes) का निर्माण करने में सक्षम होते हैं।

उदाहरण:

  • नाइट्रोजन (N): नाइट्रोजन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 1s² 2s² 2p³ है। यहाँ 2p उप-स्तर में तीन p ऑर्बिटल्स होते हैं, जिनमें प्रत्येक में एक-एक इलेक्ट्रॉन होता है। यह 2p³ स्थिति अर्ध-भरी हुई ऑर्बिटल की एक क्लासिक उदाहरण है और नाइट्रोजन की स्थिरता और रासायनिक गुणों में योगदान देती है।
  • क्रोमियम (Cr): क्रोमियम का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास [Ar] 3d⁵ 4s¹ है। इसमें 3d ऑर्बिटल अर्ध-भरी हुई स्थिति में है, जो इसे अपेक्षाकृत स्थिर बनाता है।

अर्ध-भरी हुई ऑर्बिटल्स किसी भी तत्व की रासायनिक और भौतिक गुणधर्मों को गहराई से प्रभावित करती हैं। ये ऑर्बिटल्स रासायनिक स्थिरता प्रदान करने के साथ-साथ, तत्वों के बंधन निर्माण और रासायनिक प्रतिक्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

त्रिकोणीय द्विपिरामिडीय आकृति (Trigonal Bipyramidal Shape) एक प्रकार की आणविक ज्यामिति है जिसमें पाँच परमाणु या समूह एक केंद्रीय परमाणु के चारों ओर एक विशिष्ट संरचना में व्यवस्थित होते हैं। यह ज्यामिति विशेष रूप से तब बनती है जब केंद्रीय परमाणु के चारों ओर पाँच बंधन जोड़े होते हैं।

त्रिकोणीय द्विपिरामिडीय आकृति की विशेषताएँ:

  1. परमाणुओं का वितरण:
    • इस आकृति में, पाँच बंधनों में से तीन बंधन एक त्रिकोण के कोनों पर होते हैं और इन तीनों को क्षैतिज या समतलीय (equatorial) कहा जाता है।
    • बाकी दो बंधन त्रिकोण के ऊपर और नीचे की दिशा में होते हैं और इन्हें शीर्षस्थ (axial) कहा जाता है।
  2. बॉन्ड एंगल्स (Bond Angles):
    • समतलीय बंधनों (equatorial bonds) के बीच का कोण 120° होता है।
    • शीर्षस्थ और समतलीय बंधनों के बीच का कोण 90° होता है।
    • शीर्षस्थ बंधनों के बीच का कोण 180° होता है।
  3. उदाहरण:
    • फ़ॉस्फोरस पेंटाक्लोराइड (PCl₅): PCl₅ अणु में फॉस्फोरस परमाणु के चारों ओर पाँच क्लोरीन परमाणु त्रिकोणीय द्विपिरामिडीय आकृति में स्थित होते हैं।
    • सल्फर टेट्राफ्लोराइड (SF₄): SF₄ अणु में भी त्रिकोणीय द्विपिरामिडीय आकृति पाई जाती है, लेकिन इसमें एक इलेक्ट्रॉन युग्म (lone pair) होता है, जिससे यह आकृति विकृत हो जाती है और इसे “सी-सॉ” (see-saw) आकृति भी कहा जाता है।
  4. त्रिकोणीय द्विपिरामिडीय आकृति में स्थिरता:
    • यह आकृति तब बनती है जब केंद्रीय परमाणु में पाँच वेलेंस इलेक्ट्रॉन होते हैं या जब पाँच परमाणु/समूह जुड़ते हैं। इस आकृति में समतलीय और शीर्षस्थ बंधनों के बीच कोणों का वितरण स्थिरता बनाए रखता है।
  5. विकृति (Distortion):
    • जब त्रिकोणीय द्विपिरामिडीय संरचना में अकेला इलेक्ट्रॉन युग्म (lone pair) मौजूद होता है, तो यह विकृति उत्पन्न कर सकता है। यह युग्म समतलीय स्थिति में रहकर अन्य बंधनों को प्रभावित करता है, जिससे कोणों में परिवर्तन हो सकता है। SF₄ अणु में यही देखा जाता है, जहाँ इसकी आकृति को “सी-सॉ” (see-saw) कहा जाता है।

त्रिकोणीय द्विपिरामिडीय आकृति के गुणधर्म:

  • इस संरचना में केंद्रीय परमाणु पर असममित इलेक्ट्रॉन वितरण हो सकता है, जिससे कुछ अणुओं में ध्रुवीयता उत्पन्न होती है।
  • यह ज्यामिति आमतौर पर d²sp³ या sp³d हाइब्रिडाइजेशन वाले अणुओं में देखी जाती है।

त्रिकोणीय द्विपिरामिडीय आकृति एक महत्वपूर्ण आणविक ज्यामिति है जो पाँच परमाणुओं या समूहों के एक विशिष्ट वितरण को दर्शाती है। इसके विभिन्न कोणीय संबंध और विकृति का अध्ययन रासायनिक यौगिकों की संरचना और उनके गुणधर्मों को समझने में सहायक होता है।

ऑर्बिटल में अकेला इलेक्ट्रॉन युग्म (Lone Pair of Orbital) उन इलेक्ट्रॉनों के जोड़े को कहा जाता है जो किसी परमाणु के बाहरी (वैलेंस) शेल में होते हैं, लेकिन रासायनिक बंधन बनाने में भाग नहीं लेते हैं। ये इलेक्ट्रॉन जोड़े अपने ही ऑर्बिटल में रहते हैं और किसी अन्य परमाणु के साथ साझा नहीं होते।

अकेला इलेक्ट्रॉन युग्म (Lone Pair) की विशेषताएँ:

  1. स्थान:
    • अकेला इलेक्ट्रॉन युग्म हमेशा किसी परमाणु के बाहरी शेल में स्थित होता है, और यह उस परमाणु के साथ उसके बंधक इलेक्ट्रॉनों के अलावा होता है।
    • उदाहरण के लिए, पानी (H₂O) अणु में ऑक्सीजन परमाणु के दो अकेले इलेक्ट्रॉन युग्म होते हैं।
  2. प्रभाव:
    • अकेला इलेक्ट्रॉन युग्म परमाणु के चारों ओर की आणविक ज्यामिति को प्रभावित करता है। ये युग्म अन्य बंधक इलेक्ट्रॉनों की तुलना में अधिक स्थान घेरते हैं, जिससे बंधन कोणों में विकृति हो सकती है।
    • उदाहरण: पानी (H₂O) अणु में अकेले इलेक्ट्रॉन युग्म के कारण H-O-H बंधन कोण 104.5° हो जाता है, जबकि सामान्यत: यह 109.5° होता।
  3. ध्रुवीयता (Polarity):
    • अकेला इलेक्ट्रॉन युग्म अणु की ध्रुवीयता को प्रभावित कर सकता है। ये युग्म इलेक्ट्रॉनिक बादल (electron cloud) में असंतुलन पैदा कर सकते हैं, जिससे अणु ध्रुवीय हो सकता है।
    • उदाहरण: अमोनिया (NH₃) अणु में, नाइट्रोजन पर मौजूद अकेला इलेक्ट्रॉन युग्म अणु को ध्रुवीय बनाता है।
  4. रासायनिक प्रतिक्रियाएँ:
    • अकेले इलेक्ट्रॉन युग्म अक्सर रासायनिक प्रतिक्रियाओं में भाग ले सकते हैं। ये नाभिकीय प्रतिक्रियाओं (nucleophilic reactions) में सक्रिय हो सकते हैं, जहाँ ये दूसरे अणु या आयन के साथ प्रतिक्रिया कर सकते हैं।
    • उदाहरण: अमोनिया (NH₃) में नाइट्रोजन का अकेला इलेक्ट्रॉन युग्म एक नाभिकीय अभिकारी (nucleophile) के रूप में काम करता है।

उदाहरण:

  • पानी (H₂O): ऑक्सीजन परमाणु में दो अकेले इलेक्ट्रॉन युग्म होते हैं, जो बंधक जोड़ों के साथ अणु की संरचना को विकृत करते हैं।
  • अमोनिया (NH₃): नाइट्रोजन में एक अकेला इलेक्ट्रॉन युग्म होता है, जो इसकी त्रिकोणीय पिरामिडीय आकृति को स्थिर करता है।

अकेला इलेक्ट्रॉन युग्म परमाणु के भौतिक और रासायनिक गुणधर्मों को गहराई से प्रभावित करता है। ये युग्म न केवल अणु की ज्यामिति को प्रभावित करते हैं, बल्कि रासायनिक प्रतिक्रियाओं में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनकी उपस्थिति से अणु की संरचना में विकृति, ध्रुवीयता और रासायनिक प्रतिक्रिया की प्रवृत्ति में बदलाव आ सकता है।

SF₄ (सल्फर टेट्राफ्लोराइड) अणु की आकृति त्रिकोणीय द्विपिरामिडीय (Trigonal Bipyramidal) संरचना पर आधारित होती है, लेकिन इसमें एक अकेला इलेक्ट्रॉन युग्म (lone pair) होने के कारण यह संरचना विकृत हो जाती है, और इसे “सी-सॉ” (see-saw) आकृति कहा जाता है।

SF₄ अणु की संरचना और आकृति:

  1. हाइब्रिडाइजेशन:
    • SF₄ अणु में सल्फर (S) परमाणु sp³d हाइब्रिडाइजेशन प्रदर्शित करता है। इसका मतलब है कि एक s ऑर्बिटल, तीन p ऑर्बिटल्स, और एक d ऑर्बिटल मिलकर पाँच हाइब्रिड ऑर्बिटल्स का निर्माण करते हैं।
  2. इलेक्ट्रॉनिक विन्यास:
    • सल्फर परमाणु के चारों ओर पाँच इलेक्ट्रॉन युग्म होते हैं। इनमें से चार फ्लोरीन (F) परमाणुओं के साथ बंधन बनाने में शामिल होते हैं, और एक युग्म अकेला होता है।
  3. आकृति:
    • आदर्श रूप से, SF₄ अणु की आकृति त्रिकोणीय द्विपिरामिडीय होनी चाहिए। लेकिन अकेले इलेक्ट्रॉन युग्म के कारण यह विकृत हो जाती है और “सी-सॉ” (see-saw) आकार ले लेती है।
    • इस आकृति में तीन फ्लोरीन परमाणु समतलीय (equatorial) स्थिति में और दो फ्लोरीन परमाणु शीर्षस्थ (axial) स्थिति में होते हैं।
    • अकेला इलेक्ट्रॉन युग्म समतलीय स्थिति में स्थित होता है, जिससे समतलीय और शीर्षस्थ बंधनों के बीच के कोणों में विकृति आती है।
  4. बंधन कोण (Bond Angles):
    • समतलीय फ्लोरीन परमाणुओं के बीच का कोण लगभग 102° होता है।
    • शीर्षस्थ और समतलीय फ्लोरीन परमाणुओं के बीच का कोण लगभग 173° होता है।
    • ये कोण त्रिकोणीय द्विपिरामिडीय संरचना से थोड़े अलग होते हैं, जो “सी-सॉ” आकृति का परिणाम है।
  5. ध्रुवीयता (Polarity):
    • SF₄ अणु ध्रुवीय (polar) होता है क्योंकि अकेला इलेक्ट्रॉन युग्म और फ्लोरीन के अधिक विद्युत-ऋणात्मकता के कारण अणु में असममित चार्ज वितरण होता है।

निष्कर्ष:

SF₄ अणु की आकृति “सी-सॉ” (see-saw) होती है, जो त्रिकोणीय द्विपिरामिडीय संरचना से विकृत होती है। इस आकृति में बंधन कोणों में असमानता होती है, और यह अणु ध्रुवीय होता है। अकेला इलेक्ट्रॉन युग्म इस विकृति का मुख्य कारण होता है और अणु की रासायनिक और भौतिक गुणधर्मों को प्रभावित करता है।

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